पंचकोश लिट्टी-चोखा: बक्सर जिले की विशेषता

पंचकोश लिट्टी-चोखा: बक्सर जिले की विशेषता

पंचकोश लिट्टी-चोखा बिहार की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे विशेष रूप से बक्सर जिले में मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है, जब पूरे जिले के लोग एक साथ आकर इस खास व्यंजन का आनंद लेते हैं। पंचकोश की यह तिथि सिर्फ लिट्टी-चोखा के लिए नहीं, बल्कि सनातन परंपरा के महत्व को भी दर्शाती है, जो आज तक जीवित है। लिट्टी-चोखा का महत्व बक्सर ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी गहराई से फैला हुआ है, जहाँ लोग इसे अपने पवित्र रीति-रिवाजों के अनुसार बनाते और खाते हैं। इस दिन का विशेष आयोजन, जो महीने के अगहन कृष्ण पक्ष में आता है, स्थानीय संस्कृति का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

लिट्टी-चोखा को बिहार का प्रमुख भोजन माना जाता है और इसे खास अवसरों पर तैयार किया जाता है। इस विशेष भोज का आनंद लोग एकत्र होकर लेते हैं, जिससे उनके बीच एकता और भाईचारा बढ़ता है। पंचकोश तिथि पर लोग इसे बनाते हैं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने भी इस क्षेत्र में आकर यह विशेष व्यंजन खाया था। इस प्रकार, लिट्टी-चोखा सिर्फ एक पकवान नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस तिथि का आयोजन कई वर्षों से हो रहा है और यह बक्सर जिला की पहचान बन चुका है।

 

पंचकोश का महात्म्य

पंचकोश का तिथि बिहार के बक्सर जिले में बहुत विशेष मानी जाती है, जहां हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग एक साथ लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसे पौराणिक महत्व से जोड़ा गया है, जहां कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने इस दिन लिट्टी-चोखा का सेवन किया था। जिससे इस पावन तिथि पर सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल की भावना बढ़ती है।

इस अवसर पर केवल बक्सर ही नहीं, बल्कि आस-पास के जिलों जैसे आरा, सासाराम, कैमुर, बलिया और गाजीपुर में भी लोग इस परंपरा का पालन करते हैं। लोग अपने घरों में एक ही भोजन बनाते हैं, जिससे सामूहिकता और एकता की भावना प्रबल होती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी लोगों के बीच अनुपम एकजुटता का प्रतीक बनी हुई है।

चरित्रवन का ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण ने सिद्धाश्रम में पंचकोश के दिन चरित्रवन में पहुंचे थे, जहां विश्वामित्र ऋषि का आश्रम था। यही वह स्थान है, जहां भगवान ने लिट्टी-चोखा का भोग स्वीकार किया था। इस घटना के चलते, इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व बढ़ जाता है; और आज भी लोग इस धरती पर आकर लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

हर साल इस दिन चरित्रवन में बड़े पैमाने पर मेला लगता है, जहां गैर जिलों से भी लोग जुटते हैं। यहां सुबह से लेकर शाम तक मेले का माहौल रहता है और यह भीड़ इस बात का प्रमाण है कि लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने में कितने गंभीर हैं। अतिथियों, कामकाजी लोगों, और ऐसे कई जीवन में लिट्टी-चोखा के प्रति गहरा लगाव रखने वालों की उपस्थिति इस तिथि को और भी खास बना देती है।

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